रिमझिम पानी म मन मंजूर हो जाथे काबर
बादर के गरजन मोला अब्बड डेरवाथे काबर ?
पानी गिरथे तव ए माटी बिकट मम्हाथे काबर
रिमझिम पानी ह मोर मन ल हरियाथे काबर?
नोनी आही तीजा पोरा म अगोरत हावय महतारी
रहि रहि के नोनी के गोड हर खजुआथे काबर?
बादर आथे तव मस्त मगन होथे किसान हर
तरिया हे मतलाय तभो मोर मन उजराथे काबर ?
‘शकुन’ अगोरत हे मनखे सावन अउ भादो ल
धक धक धक सावन आगे मन ल धडकाथे काबर ?
शकुन्तला शर्मा , भिलाई [छ ग ]
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“बूड मरय नहकौनी दय” (छत्तीसगढ़ी गज़ल संग्रह) से
गजल ह पिंगल विधा म आधारित होथे जेला बरते म कोनो कोनो मेर चुक होय हवय परयास बहुत बढिया हवय
शर्माइन भौजी तोर गजल म बड़ मिठास हे फेर कंहू कंहू जगा म छ्न्द्कुल्हा लागिस
जौन लाइन म गलती हावय तेला थोरिक सुधार नइ देते बाबू , मोला नीक लागतिस ।